Monday, April 6, 2020

ये रात

चाँद भी निकला है, तारे भी हंस रहे है |
इस शांत रात में, हम क्यूँ तड़फ रहे है ?
हम थे ही अकेले, इससे दुःख क्यूँ हुआ ?
हर आहत अपनी है, अँगारे हृदय में जल रहे है ||

आज की ये रात, बढ़ती ही जा रही है | 
गैरों के लिए जिंदगी, ढ़लती ही जा रही है ||
छिपाते है ख्वाब तो, ये दिल जल  उढ़ता है |
बताने पर हर ख़ुशी, मरती ही जा रही है ||

विस्तृत चाँद के प्रकाश में, मधुर ब्यार बहती है |
जब छूकर निकलती है, हर दर्द बयाँ करती है ||
नहीं ये दर्द नहीं है, मेरे प्रियतम के हृदय का |
कह दो झूठ बोला, वो अब भी प्यार करती है ||

ये रात बड़ी शांत है, जरा खुद को समझ लू मैं |
कोई नहीं यहां मेरा, क्यूँ न अब समझ लू मैं ||
बिसरा दिया जगत ने, क्यूँ किसको याद रखूँ |
हकीकत से था दूर, सच्चाई को समझ लू मैं ||

ऐ रात! ढल ना अब, मैं विरह का सताया हूँ |
सुमधुर मिलन की आस, आतप को ही पाया हूँ ||
उम्मीद की थी उनसे, अनगिनित गम ही मिले |
'आज़ाद' न चाह सुबह की, जिंदगी से ही खफा हूँ || 

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