Tuesday, September 13, 2011

मैं तो हो चला हूँ दीवाना

मैं तो हो चला हूँ दीवाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना

तुम्हारा बार बार, मेरे पास आना
आकर के हृदय को, जला जाना
यादों में हंसी ही, याद आना
मेरी मदहोशी, को भी, छू जाना

अपने लब्जो को, होंठो से छिपाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना
रह रह कर, मुझसे बातें करना
ना मन, फिर भी, मुझसे है पढना

बिना काम हमेशा, मेरे साथ चलना
मेरी नादानी पर, गुस्से से चढ़ना
वो बहुत करीब से, हाथ मिलाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना

वो पल पल, मुझे ही, निहारते रहना
कुछ कहने की, हमेशा, कोशिश करना
व्याकुल हमेशा, हर पल जो रहना 
गम ही  गम, शायद, दर्द जो सहना

वो होले से मेरे, दिल को हिलाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना
कभी बक बक, तो कभी, चुप हो जाना
कभी हंसी चेहरा, तो कभी रुलाना

बिछुड़ते जब हम, कभी था रो जाना
पूछा हमेशा, कुछ नहीं, मुझे होगा जाना
वो अजीब ढंग से, दर्दो को सिलाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना

वो शर्म की डोरी में, बंधी होगी शायद
मेरी ख़ुशी हमेशा, चाहती होगी शायद
मिलकर बिछुड़े ना, डरती थी शायद
मेरे जबाब पर, शक करती थी शायद

अपने मासूम नैनो का, गूंठ  पिलाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना
रात भर सोचता रहा, जागता रहा मैं
उसको दिल के आईने से, झांखता रहा मैं

रब उसको ख़ुशी दे, मांगता रहा मैं
उसकी पीड़ा ख्यालों में, दहलता रहा मैं
उसके दर्दो से, मेरा चिल्लाना
मैं तो हो चला हूँ दीवाना

मिली जब, मैंने पूछ ही लिया अब
दिल में कुछ तुम्हारे, ठीक नहीं सब?
खामोश रही पर, पलके भींगी थी तब
उसके मासूम अश्क, मुझको छुए थे जब
'आज़ाद' विरह में, अब उसका सताना

मैं तो हो चला हूँ दीवाना