Sunday, December 30, 2018

फिर से ...



डूबा था इश्क में इतना, कि कोई गुजारिश ही न बाक़ी रही |
चाहा था तुझे इतना, कि कोई चाह ही न बाक़ी रही ||

मिला था बहुत सुकून, तेरे इश्क में डूबने का |
पर अब इश्क के नाम से ही, नफ़रत सी हो गयी ||

जलाया था दिल कई दफ़े, बहुत तरह से तूने |
पर अब दिल जलाने की, कोई वज़ह न रह गयी ||

फख्र था तुझको बहुत, कि तुझ पर मर मिटा हूँ मैं |
वो वक्त ही मदहोश था, बस यूही गलतफहमी हो गयी ||

झलकें थे आँसू कई दफ़े, तेरी याद में रह रह कर |
"आज़ाद" इन आँखों में अब, कोई तमन्ना ही न रह गयी ||