Sunday, April 5, 2020

सरकारी तंत्र

जब भी सरकारी तंत्र का नाम जुबान पर आता है तो ये धारणा पहले ही मस्तिष्क में आ जाती है की सरकारी तंत्र मतलब निकम्मा, आलसी, बद्तमीज और काम ना करने वाला तंत्र | जोकि जनता के पैसों से ऐश करता है और जनता का ही काम नहीं करता |  बाबू गिरी वाला तंत्र | अपने मन के मालिक ही सरकारी तंत्र के नौकर होते है |
बहुत घृणा भरी है जनता के मन में इस तंत्र को लेके, और क्यों हो भी न, क्यूंकि उनको इस तंत्र से परेशानी होती है |  काम भी इसी तंत्र से पड़ता है और बार बार पड़ता है | बार बार बाबूजी बोलना पड़ता है | घंटों बाबूजी को बर्दास्त करना पड़ता है |
लोग गुस्से में बोलते है की प्राइवेट तंत्र ज्यादा अच्छा होता है क्यूंकि वो इज्जत के साथ पेश आते है और सर सर भी बोलते है बार बार | ये आपके बुलाने पर आपके घर तक भी आ सकते है |
परन्तु, जनता हमेशा प्रयास करती है सरकारी तंत्र का हिस्सा बनने के लिए, ये एक गौर करने वाली बात है | इसका मतलब क्या है ? जब हमको पता है कि सरकारी तंत्र अच्छा नहीं है फिर भी उसी तंत्र में आने के लिए मेहनत की जाती है |
भारत जैसे देश में ज्यादातर प्राइवेट तंत्र का मतलब होता है शोषण | और वहां काम करने वाले, कम्पनी के मालिक के नौकर होते है | जो अपना रोजगार बचाने के लिए उन्ही के आगे पीछे घूमते रहते है | इसका एक कारण ये भी हो सकता है है कि भारत जैसे देश में जनसंख्या ज्यादा होने के साथ साथ रोजगार के काफी कम श्रोत है | गरीबी भी इसका एक कारण हो सकती है | मानवता नाम की चीज बहुत कम बची हुई है और कर्मचारी के लिए कोई अधिकार नहीं होते, उनको जब चाहे कंपनी से निकाल सकते है | उनको जितना चाहे वेतन दे सकते है परन्तु उन्हें इसके खिलाफ बोलने का अधिकार भी नहीं है | अगर वो इतना दुस्साहस करते है तो उन्हें प्रताड़ित किया जाता है | नौकर को ज्यादा घंटे काम करने के लिए मजबूर कर सकते है | इसके अलावा छुटियाँ भी अपने हिसाब से तय कर सकते है | कर्मचारी पूरी तरह से बेबस होता है काम करने के लिए |
सरकारी तंत्र में ये सब नहीं होता है | वहां आप अपने से ऊपर वाले अधिकारी की बात में भी तर्क वितर्क कर सकते है | आपके वेतन में कोई सौदेबाजी नहीं होगी | आपके लिए छुटियाँ निर्धारित है | आपके काम करने के घंटे भी निर्धारित है | आप अपनी जिंदगी ज्यादा अच्छे से जी सकते है | आपको किसी की भी जी हजूरी करने की जरुरत नहीं है | आपको रोजगार से निकालना तो बहुत ही कम मामलों में होता है | वो भी तब जब मामला बहुत गंभीर हो | आप दिमागी तरीके से आजाद रहते हो |
अब सवाल यह है कि इतना अच्छा सुविधा देने वाला तंत्र बदनाम क्यों है ? इसके पीछे कहीं सरकार ही तो नहीं है | सरकारी तंत्र पर इतना भार होता है कम से कम संसाधनों से  तंत्र को चलाना होता है | जितना पैसा तंत्र पर खर्च किया जाना चाहिए उतना नहीं हो पाता है | रिक्तियों को सरकार भरना नहीं चाहती है | सरकारी तंत्र में भी चापलूसी वाला माहौल प्रारम्भ हो चुका है | अगर आप अपने से ऊँचे पद पर बैठे कर्मचारी की चापलूसी करोगे तो आपकी पदोन्नति जल्दी से जल्दी हो जाएगी |  इससे इस तंत्र के कर्मचारियों में विरोधाभाव पनप जाता है और वो एक दूसरे के खिलाफ ही लड़ने लगते है |  वो हमेशा चालबाजियों को सीखने में लग जाते है |  वो एक दूसरे से बात करना तो दूर एक दूसरे को देखना भी नहीं चाहते, जबकि वो एक ही तंत्र का हिस्सा होते है | ये सरकारी तंत्र को ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीका है | ऊपर बैठे लोग सरकार के इशारों से काम करते है | फिर किसको परवाह जनता की क्यूंकि उनके ऊपर तो चापलूसी वाला हाथ होता है | ये विडंबना ही है जो सरकार जनता के लिए होती है है वो ही जनता के इस तंत्र को उन्ही के सामने इस्तेमाल करती है, उसको नष्ट कर देना चाहती है | मतलब सरकारे जनता का भला नहीं चाहती |          

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