भीड़ से अलग तन्हा सो गया
तेरी यादों के बबात जख्मी हो गया
ऐ, मालूम नहीं, की तू रोया पर मैं रो गया
तेरी मजबूरियां मुझे पता नहीं है
पर मेरी मजबूरियां भी कम नहीं है
मजबूरियों ने दूरी बढाने पे आमदा कर दिया
ऐ, मालूम नहीं, मुझे इश्क है पर तुझे नहीं है
कभी तेरा भावुक होके जोर जोर से रोना
फिर तेरी याद में रात भर ना सोना
तुझसे दिल की बात करूँ भी तो कैसे?
ऐ, मालूम नहीं, मुझे क्या क्या होगा खोना
गिले शिकवे हो तो किससे कहूं मैं?
तेरे मेरे बींच क्या है कैसे सहूँ मैं?
ये कैसी उम्र की खुमारी मुझे तुझे चढ़ी है?
ऐ, मालूम नहीं, पल पल कैसे रहूँ मैं?
तेरी बाँहों के दरम्यान मुझे चैन मिलता है
तेरी ख़ुशी में मेरा दिल भी खिलता है
ये अजीब बेढंग सा कैसा रिश्ता हो गया
ऐ, मालूम नहीं, 'आज़ाद' क्यों फिर भी मिलता है?