Tuesday, June 11, 2013

विरह मे…

तेरी शरारत मुझे जीने न दे,
क्योंकि तेरी नज़रों में मेरा आशियाना हो गया है ।
मेरे होठों से लब्ज निकले या न निकले,
पर दिल मेरा भी तो सयाना हो गया है ॥
तुझे मैं कैसे न पसंद करूँ ?
तूने ख्यालों में मेरे घर बना तो लिया ।
तूने कहा न पसंद करती है मुझे,
 पर इशारों ने तेरे सच बता तो दिया ॥
तेरा चुपके से धीरे से मेरे तन को दबाना,
'आज़ाद' के भावुक हृदय में, प्रेम का दीप जला तो दिया ॥  

विरह में ...

मेरे सपनों का जहाँ, अजीब हो गया ।
इस प्यार में यारों, मैं फ़कीर हो गया ॥
पता नहीं; अश्क आँखों में रुके या होठों तक आये ?
रातों की नींद, दिन के ख्याल, बस खो गया ॥
दर्द हुआ या नहीं, आभास ना होता है।
क्योंकि मेरी जान के बिना, मेरा शरीर हो गया ॥
उनकी हंसी के लिए, भुलाया था ज़माने को ।
'आज़ाद' आज वो ही हमसे, अजनबी सा हो गया ॥