Monday, January 30, 2012

जागो युवाओं

अमर शहीद, सर कटा के गए थे वतन के लिए 
और हम, सर झुका से लिए है वतन के लिए
देखो सर उढ़ा के, आज़ादी के लिए मेरा वतन अब भी रो रहा है
जागो युवाओं, मेरा देश सो रहा है

हर तरफ अन्याय है, पाप है, हा हाकार है
कहीं बदला, कहीं हार, तो कहीं मार है
आज़ादी आयी तो बस, कुछ ही जनों के लिए
बाकी सब गुलाम है, पैदा हुए गुलामी के लिए
औरों के लिए कानून, उनके लिए सब हो रहा है
जागो युवाओं, मेरा देश सो रहा है

संविधान बनाया, समानता के वेश का
वो ही पर्याय बन गया, राग-विहाग-विद्वेष का
सज्जन को रोटी नहीं, अपराधी मलाई खा रहा है
'आज़ाद' देश का भविष्य, जाने कहाँ जा रहा है?
आज़ादी का मतलब, मेरा देश खो रहा है
जागो युवाओं, मेरा देश सो रहा है

याद करो कुछ, अमर शहीदों के बलिदान को
न्योछावर किये प्राण, सलाम उनके मान सम्मान को
एक धीमी सी गुलामी, हमें कसती जा रही है
स्वप्नों में अब आज़ादी, हकीकत में दूर जा रही है
'आज़ाद' सोच कुछ पल, ऐसा क्यों हो रहा है
जागो युवाओं, मेरा देश सो रहा है    

Saturday, January 14, 2012

व्याकुलता

बंद कोहरे की चादर में,
घने पत्तों की ओट में |
क्षितिज के उस पार,
कड़कडाती बिजली के आवेश में,
एक धीमी सी आवाज सुनाई देती है|
शायद निर्लज्ज वाटिका उसे दुःख देती है||
खाली पड़े बंद पटो के अन्दर|
उमंग बल खाती हुई |
बहकती हुई चहकती हुई|
सूनेपन से तड़पती हुई||
अधखुले अधरों से लय में,
जीवंत स्वप्नों को ताक पे रख,
गाती है करुण हृदय बन|
दीपक की लौ को निहारती हुई,
हराती है उसे अपने तेज से|
हाथो को बंद कर लौ के ऊपर,
जलती है इत्मिनान से||
शायद तपने के गुबार से||
लौ को हराने की चाह में|
नरभक्षी बाघिन की राह पे||
कभी चलती है कभी रूकती है|
यौवन की लू जो चलती है||
संभलना उसे आता नहीं|
रुकना उसे भाता नहीं,
हर दिशा में कदम बढते है||
शायद पूस की कपकपाती सर्द,
जगने को मजबूर कर रही है|
उसके व्याकुल यौवन को,
पीड़ा में धकेल रही है||
वो हंसती है और रोती है,
ये तो वक्त के आगोश में
कोई चादर ताने सोता है|
पता नहीं सोता है या सोचता है||
बंद पलको के अन्दर भी,
न सोया न नींद आई|
वो रहस्यमयी चुभन,
आ जा कर पास आई||
बदलती करवटें भी खामोश हो जाती है|
पर उफ़ तक ना करती है||
वो मूक नजाकत भी सजा देती है|
चिल्लाने पे भी सजा मिलती है||
'आज़ाद' वक्त के कदम नहीं रुकते,
तभी तो जिन्दगी, कभी सजा तो कभी मजा लगती है||