Saturday, December 31, 2011

अजमाना चाहता था


 मेरी आँखें भींगी थी, उसकी आँखें भी भिगाना चाहता था
तड़फ में झुलस रहा था मैं, उसको भी रुलाना चाहता था
बस एक ही बात उढ़ी जेहन में, क्या वो भी मुझे इतना चाहती है?
मैं तप गया था चंद विरह में, क्या वो भी? अजमाना चाहता था

अपने को उससे अलग किया , झूठमूठ, अजमाना जो था
हर बात पे उनकी, गुस्सा मेरा, झूठमूठ, सताना जो था
सकपका कर वो, रह गयी थी उस रोज
अब तो मेरी हर बात सही, शायद झूठमूठ, मनाना जो था

मैंने दर्द तो बहुत दिए, पर वो उनको छुपा लिए
मैंने जख्म तो बहुत किये, पर वो भी सिला लिए
हर बात पे आग लगायी, मैंने बस उनके लिए
पर! वो हर आहत पे, राहत से मुस्करा लिए

भूलाये ख्वाब सारे उनसे, उन्होंने अपने सब बना लिए
मिटाए हर पल संग के, हर क्षण उन्होंने सजा लिए
हर याद उनकी मैंने, स्वप्न में दफ़न कर दी
पर अब नींद भी, स्वप्न भी, गायब! और रातें, घुट घुट कर जिए

सजा देना चाहा उन्हें, खुद सजा मिल गयी
हृदय के भावुक भाग में, मूर्त उनकी जम गयी
बार बार अपने को ही कोसता रहा मैं, सारा समय
वो आयी, बंद होंठ थे, दिल को छूकर गयी

उनके चेहरे की भाव भंगनाएं, मुझको दुःख दे रही थी
उनकी बिन कही आवाज, मुझे सुनाई दे रही थी
वो मुड़ी, वापस आई, सीने से लग रो गयी
'आज़ाद' मेरी अजमाइश के जबाब, उसके हृदय की धड़कन दे रही थी  

Monday, December 19, 2011

अन्तःद्वंद

ये कैसी उहापोह मेरे अन्तः में
क्यों इसके आगे मैं झुक जाऊ
क्यों बदल रही है पवन रास्ते
क्या मैं धूल आंधियो से रुक जाऊ

क्यों डूब रहा बीते अतीत में
कैसे उन कष्टों से मैं मुकर जाऊ
ऐ दुनिया दे इतनी नुफरत मुझे
कि मैं काँटों से भी गुजर जाऊ

जो थम गया वक्त के कदमो में
उस कायर को क्या नाम दू
जो गिर गिर के चलता रहे
उसे हृदय का स्नेह वार दू

जो थमे नहीं चट्टानों से भी 
उन्हें जीवन की हर हंसी बहार दू
ऐ ज़माना, रो इस कदर तू
मैं विपत्तियों को हटा, नया संसार दू
................................................

जब पीड़ा से सना सागर भी
लहरों को किनारों पे धोता है
बढ़ रहा नीर उसके अन्शुओ से
जब आप आप ही रोता है

कैसा दुःख कैसी मुसीबत
जिस चिर वेदना में तू खोता है
भूल जा जो हुआ होने वाला
ये जग तो स्वार्थ का झरोंता है

बढ़ता रह मुसाफिर आगे
परवाह न कर दुनिया की ज़रा
जो छूट जाये अपने भी तो  क्या
जा उस ओर जहाँ पौरुष भरा

वो कदम तुझको रोकेंगे नहीं
भर देंगे वीरत्व ना अफ़सोस ज़रा
खुद में डूब जा इतना ओ राही
ना सुन क्या बुरा क्या खरा
....................................................
झड़ते है आंसू  किसी की आँखों से
तो दिल मेरा क्यों रोता है
गरीब बेसहारो का खा खा कर
कोई सुख  से महलों में सोता है

ये उसकी किस्मत ये मेरी है
दिन रात इसी में क्यों खोता है
उठ चल भर कर नैनो में रुधिर
क्या तेरे तन कुछ ना होता है

जब चाहता गुलामी करना तू
क्यों आजादी का नारा लगाता है
क्यों भूल रहा तू स्वम में है
बेवक्त वेबुनियाद जब चिल्लाता है

चींख चींख कर गला रुंध गया
भुजाओ को क्यों नहीं अजमाता है
खोल ले सीने के हर जख्म को
जो हर पल तेरे को काटता है
..............................................

न जा उस दर पे कभी
जो देने का एलान हमेशा करते है
अगर गया तो फंस गया
वो फंसाने के लिए ही तो कहते है

दिखला दे उन काफ़िरो को तू 
कैसे ज्वाला से घर जलते है
लगा दे आग उनके महलों को
जो चैन से ना खाने देते है

जब लाज लगी हो दांव पे
बसन भी कोई ना छोड़ता है
जब चार दिन का भूखा मानुष
रो रो के दम तोड़ता है

क्या तुम्हारी हुकूमत इतनी है
अमीरों के आगे हाथ जोड़ता है
ले ले अपने अधिकार तू सारे 
'आज़ाद' तो लहू में पोंड़ता है 

याद आये वो पल

यादों की डोली में तुम्हे बैठाया, नैनो को मैंने दुनिया से छिपाया,
तकदीर में मेरी तुम ना थी, जुदाई ने मुझे पल पल रुलाया.

ख्वाव सजाये तो सजा मिल गयी, हर सजा ने मुझे तन्हा बनाया,
हार गये हम जीती बाजी, जब दिल ने तुम्हे करीब पाया.

आँखों की भाषा  दिल ना समझा, दिल को दिल से दूर पाया,
अन्श्रुओ  की धारा रुक ना सकी, जब बातों ने तेरी ऐसे ठुकराया.

हर अदा को तेरी, मुस्काराहट को तेरी, पलको पे था सजाया,
मेरी नैनो की नींद को जाना, तुमने जाने कहाँ था उड़ाया.

मेरी हर सांस में बसी थी तुम, हर सांस ने मेरे तन को जलाया,
गुजरती व्यार जो अंगराई लेती हुई, व्यार ने मींठा सा दर्द जगाया.

सुबह की महक, शाम की रौनक, अपने से उसे दूर कराया,
क्यों आया इतना करीब उसके, जिससे मैं बहुत दूर पाया.

ठहर जाती है अपनी दुनिया, हृदय की पीड़ा जाग जाने पर,
क्यों लाते वो तन्हाई को, हर सपने के जल जाने पर.

जख्म भरता नहीं, याद मिटती नहीं, घाव गहरा जो लगाया,
अरे 'आज़ाद'   दुनिया बेगानी हुई, क्या तू भी ठोकर खाया.

Thursday, December 15, 2011

सबको समझो

 मैंने ऐसा नहीं सोचा था. मेरे कहने का वो मतलब नहीं था. मैं तो कुछ और सोच के बोला था. पर उसने वो नहीं सुना जो मैं कहना चाह रहा था. उसने उसे गलत समझा. मैंने हर तरह से उसे समझाने की कोशिश की, पर वो तो बड़ी के ऐंठ में था. लोग हर बार वोही बोलते थे कि थोड़ा और अनुभव लो जबकि हकीकत तो उन्हें भी पता होती थी. वो हमेशा कहते थे कि तुम कुछ भी नहीं जानते हो, शायद वो कुछ और ही कहना चाह रहे थे. पर मैं तो नादान
नहीं था. सबकुछ समझ सकता था, उनको वो सब साफ़ साफ़ कहना चाहिए था. पद के नशे में अँधा हुआ हमेशा अँधा ही रहता है क्योंकि शबाब उसे सोचने नहीं देता. उसने मुझे ऐसा बोला मुझे दुःख हुआ, क्योंकि उसने उसे परिहास का विषय बना दिया. उसके द्वारा बोला गया एक एक शब्द मेरे को संताप दे रहा था. पर मैं खामोश ही रहा पता जो था, बात बढने पर सिर कुटते है.------------------------------------------------------------------

शायद मैंने भी कभी किसी को ऐसे ही बोला होगा, मजे लेने के लिए. इन्सान कि प्रव्रत्ति मजे लेने के लिए लालायित जो रहती है. पर सबके मजे लेने के ढंग अलग अलग होते है. कोई इस तरह से लेता है कि किसी को पता भी चलता. कुछ इस तरह से कि जमाना जान जाता है. शायद मैंने भी ये नहीं सोचा होगा कि मेरे मजे लेने से दूसरा क्या क्या कर सकता है? क्योंकि अगर मैं ऐसा सोचता तो मैं जिन्दगी को आदर्श जिन्दगी बना सकता था. इस बात ने मुझे लोगो से बात करना छुड़वा दिया. केवल कैसे हो? क्या चल रहा है? से तंग जो था. लोगो को उबाऊ लोग पसंद नहीं. जबकि सब उनका उदाहरण देते है.-------------------------------------------------------------
एक मानव होने के नाते उससे ये ही तो पूझा था कि मैंने गलती क्या कि है? अगर हम सभ्य समाज के सपने देखते है तो उनके लिए उन पदचिन्हों पर चलना भी पड़ेगा, जिनके बिना सभ्य समाज कि नींव नहीं डाल सकते. अगर मैंने गलती कि थी तो उसे बताना चाहिए था ताकि मैं उससे सबक ले सकू. डांट फटकार कर चले जाने को कह देना, उसके लिए आसान था, शायद और लोगो के लिए भी आसान होता, शायद किसी घड़ी में मेरे लिए भी. पर उस समय मुझे वो सब खल गया. ये तो जिसका प्रतिविम्व था खुद विचलित था. अगर मैं ये किसी और बरिष्ठ को बोला तो वो बोला इसमे बुरा क्या लग गया? परन्तु उस समय जो आवाज, चेहरे कि भाव भंगनाएं बदलते हुए जिस तरके से निकली थी उसको मैं कैसे समझाता. --------------------------------------
मैं धन्यवाद देता हूँ उस ईश्वर का जिसने मौत बनायीं और हम लोगो ने संसार को नश्वरवाद नाम दे दिया. मौत हमारे प्रदर्शन का अंतिम दर्शन है. मौत को भूल जाने वाला ही दुखी और लोलुप बन जाता है. हम सब दुखी और लोलुप बनते जा रहे है. प्रकृति ने धरा को सबकुछ दे रखा है. लेकिन जब धरावासी प्रकृति के नियम तोड़ते है तो उसका कोप जाग जाता है. कोप का भाजन श्रद्धा के तांते से जो होता है. प्रकृति के नियम को समझना और उसे अमल करना थोड़ा कठिन है तभी तो बहुत कम लोग उसके रहस्यों को जानने कि चेष्ठा करते है. ----------------------------------------------------------------
घरो को पत्थरो और दीवारों को तस्वीरों से भर देने से कुछ नहीं होता उससे डरना भी चाहिए. पहले होता आया है इसलिए मैं कर रहा हूँ, ये सही और सटीक जबाब नहीं है. आप मानव हो, मानवता ही आपके रग रग में होनी चाहिए. वो तो कभी न रोया जिसको रोना चाहिए था. परन्तु ये आंसू उनकी ही आँखों में क्यों आते है, जो रोने के लिए बाध्य है. वो कर सकते है सबकुछ पर उनके पत्थर दिल पे सांप जो लेता है. तथा जो कर के दिखाते है उनको पहचानने कि फिदरत हममे है ही नहीं.----------------------------------------------------------------------------
इसने बोला ये करो, उसने बोला वो कर, तुम कर सकते हो कम से कम प्रयास तो करो. हर कोई मेरे से उम्मीद कर रहा है. सभी ने मेरे से कुछ करने के लिए बोला पर किसी ने वो नहीं कहा जो मुझे करना चाहिए था. जो मेरे लिए और आदर्श समाज के लिए जरुरी है. कैसी विडम्बना है लोगो कि वो उढे तो सभी ने उन्हें अपना आदर्श बना लिया, पर जिस समय वो जाग रहे थे तो उन सभी ने उन्हें अपमानित किया था. यह जरुरी नहीं कि अच्छा शरीर, अछ्छा धन और समाज में अछ्छी पहचान, कुछ को हमेशा खुश रख सकती है. वो तो अपने को दुर्बल, असहाय भी मान सकते है. ख़ुशी और दुःख तो ये दर्शाता है कि हमारी सोच - विचारो कि जड़े कितनी पैन्ठी है. ---------------------------------------------------------------------------------------
अब क्या हुआ? मैंने सब कुछ तो कर लिया, जो आपने कहा था. अब आप को गुस्सा क्यों आया? इतने पर वो बोखला कर बोला क्या तुम मेरे गुस्से को कम करोगे? अभी ये काम करना है अभी वो काम करना है. कोई भी अछ्छी तरह से काम नहीं करना चाहता. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. उनके कहे हुए काम को कोई न करे ये तो नामुमकिन था. फिर वो आखिर जाताना क्या चाह रहा था? जबकि उसको मैंने कभी काम करते देखा ही नहीं बस बोलते ही देखा था. शायद वो ये बताना चाह रहा था कि वो बस बोलेगे और उसके खिलाफ कोई नहीं बोलेगा. -----------------------------------------------------------------------------------------------