Saturday, July 16, 2011

अंतिम ख़त

उस रात मैं अच्छी तरह से सो नहीं पाया था| कारण? मैं दुनिया के रीती रिवाजो और उनके कानूनों को करीब से झाँखने की कोशिश कर रहा था| सोच रहा था कि  हर आदमी इतना तो स्वत्रंत होना चाहिए कि उसको अपनी जान गंवानी कि नौबत ना आये| मैं दिमाग की अंतिम सतह पर था, क्योंकि मैंने कभी सोचा भी ना था कि लोग हालात में क्या क्या कर सकते है? उसके बाद मैंने जिन्दगी को अलग नजरिये से देखना आरम्भ किया क्योंकि उस घटना ने मुझे सोचने पर मजबूर जो किया था|   
दरवाजे पर आहात हुई थी बाहर कोई बुला रहा था आकाश दोड़ता हुआ गया| वो मेरे रूम में ही रहता था| मैं दुपहर की नींद का लुफ्त उठा रहा था| वो अपनी दिनचर्या को सख्ती से निभाता था| सुबह से लेकर शाम तक मुझे समय की कीमत ही बताता था| हम दोनों का इंजीनियरिंग में प्रथम साल चल रहा था| परीक्षाएं पास थी|
दरवाजे पर पोस्टमेन था| मैंने उसे उछलते  हुए देखा| वो ख़ुशी से चिल्ला रहा था मेरा ख़त आया है, मुझे उसने फिर याद किया है, वो मुझे भूले नहीं है, वो मेरे अपने है, वो मेरा सब कुछ है, इस महीने में तीसरा ख़त आया है, पर अफ़सोस मैं एक भी ख़त नहीं डाल सकता, ये क्या जिन्दगी है मेरी? दुनिया की बंदिशों ने मुझे बांध के रखा है| लेकिन जल्दी... जल्दी मैं उन्हें मिलने जाऊंगा|
वो जल्दी जल्दी में जाने क्या क्या बोलता जा रहा था| वो बहुत खुश नजर रहा था| मैंने पूछा क्या हुआ भाई किसका ख़त है? वो बोला मेरे महबूब का|  
उसने जल्दी से लिफाफा फाड़ा और ख़त पढ़ना आरम्भ किया| मैंने मजाक के लहजे से बोला, भाई अपने महबूब की कुछ खुशखबरी मुझे भी सुना दो| वो ख़ुशी में बोला ठीक है मैं जोर जोर से पढ़ता हूँ| और वो जोर जोर से पढ़ने लगा| उसने पढ़ा "मेरे प्राणप्रिये दोस्त, अभी तक तो तुम मेरे सिर्फ अच्छे दोस्त थे लेकिन आज मैं तुम्हे अपना......... " इसके बाद वो धीरे धीरे पढ़ने लगा और धीरे धीरे उसके गाल अंशुओं से भीगने लगे| मैंने पूछा क्या हुआ? वो कुछ नहीं बोला| वो पढ़ रहा था और रो  रहा था| मैं भी परेशान हो गया शायद कुछ बुरी खबर है| मैंने फिर पूछा सब ठीक तो है? वो फूट फूट कर रोने लगा और अपना सिर पकड़कर नीचे बैढ़ गया| मैंने अपना बिस्तर छोड़ा और उसके पास गया| उसके कंधे पर हाथ रख कर पूछा क्या हुआ? उसने कुछ कहा नहीं| वो ख़त मुझे पकड़ा दिया| इससे पहले वो अपना ख़त मुझे कभी नहीं पढने देता था| मैंने उससे कहा क्या मैं इसे पढ़ सकता हूँ? उसने सम्मति मैं अपना सिर  हिला दिया| उसके बाद मैंने ख़त पढना आरम्भ किया| मैं जैसे जैसे ख़त पढ़ रहा था मेरे दिमाग के भाव बदल रहे थे| जब सारा ख़त पढ़ लिया तो मैं भी खामोश हो चला था और ना चाहते हुए भी आंसुओं को रोक नहीं पा रहा था| मेरी समझ में नहीं  रहा था की दोस्त को कैसे सांत्वना  दू क्योंकि मैं खुद कमजोर हो गया था| उस ख़त ने मेरी जुबान  रोक दी थी| ख़त का एक एक शब्द मेरे दिमाग में कोंध रहा था| क्योंकि वो उसका अंतिम ख़त था| ख़त में लिखा था 
"मेरे प्राणप्रिये दोस्त, अभी तक तो तुम मेरे अच्छे दोस्त थे लेकिन आज में तुम्हे अपना परमेश्वर मानती हूँ| तुम मेरे पास रहते थे तो मुझे बहुत अछ्छा लगता था| लगता था जैसे संसार की हर ख़ुशी मुझे मिली है| मैं ये ख़ुशी हमेशा के लिए ताउम्र पाना चाहती थी| पर वो साथ आजीवन नहीं हो पाया| आज मैं तुम्हे अपने दिल की बात बता रही हूँ तुम्हारे बिना रहते हुए मुझे पता चला की मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती| जब तुम एक भी दिन नहीं मिलते थे तो मैं बहुत रोती थी और खाना भी नहीं खाती थी, उस दिन अपने जीवन का बड़ा दुखमय दिन मानती थी| मुझे नहीं पता प्यार क्या होता है? लेकिन ये तन्हाई मुझे अकेला अकेला सा महसूस होने पर मजबूर कर रही है| ऐसा लगता है जैसे मेरी दुनिया उजड़ गयी है, तुम्हारे बिना किसी भी चीज की इच्छा ही नहीं होती| रात को तुम्हारे स्वप्न और दिन में तुम्हारी कल्पना मुझे न सोने देती है न कुछ खाने देती है| मुझे तुम्हारे विरह ने बहुत कमजोर बना दिया है| मेरी हर स्वास में तुम्हारा भोलापन, तुम्हारे संग की बातें, तुम्हारा वो मुझे पढाना, तुम्हारी आँखों में मेरे लिए वो अंशु, मुझे परेशान करते हुए आते है| क्या तुम भी कभी पुरानी यादों को याद करते हो? क्या तुम भी मुझे चाहते हो? क्या तुम भी मेरे लिए इतना ही परेशान हो? शायद इनका जबाब मैं नहीं सुन सकती| मेरे घर वाले मुझे कही जाने नहीं देते उन्होंने यहाँ मेरी जेल बना  दी है| मैंने पढने को बोला तो कहते  है की लड़की जितना कम पढ़े उतना ही अछ्छा है| मेरे ज्यादा कहने पर उन्होंने मुझे बी का फॉर्म प्राइवेट भरवा दिया है| मेरे घर वाले मेरी शादी करना चाहते है उन्होंने लड़का भी खोज लिया है जबकि मैं तुमसे शादी करना चाहती हूँ| पर मैं अपने घरवालो को भी नहीं बता सकती क्योंकि तुम तो जानते हो की मेरे घर वाले कितने बुरे इंसान है| अगर मैंने तुम्हारे बारे में  बताया तो वो तुम को मार डालेंगे इसी वजह से मैंने नहीं बताया| तुम पढने मे काफी  अच्छे हो तुम अच्छा पढ़ लिखो| अगर हम भाग कर भी गए तो घर के रास्ते बंद हो जायेंगे और अभी हम अपने पैरो पर भी खड़े नहीं हुए है| इससे तुम्हारा भविष्य ख़राब हो जायेगा| मैं तुम्हारे भविष्य को ख़राब नहीं कर सकती| मुझे ख़ुशी होगी की तुम खूब मन लगा के पढो| मेरी परवाह ना करना| क्योंकि हम लडकियों का इस संसार में कोई औचित्य नहीं है| उन्हें तो घर की चारदीवारी में  बांध के रखा जाता है| हम लड़किया तो गुलामो की जिन्दगी जीते है| हमारा घूमना तो दूर, किसी से बात भी नहीं कर सकते| क्या जीवन है हमारा| मैं किसी दूसरे  से शादी नहीं करूंगी क्योंकि मैं तुम्हारी ही रहूंगी हर पल हर जगह हर माहोल  में| मैं तुमसे प्यार करती हूँ इसलिए मैंने मरने का फैंसला लिया है मैं अपनी जान दे रही हूँ| तुम खुश रहना और अछ्छी तरह पढना| तुम्हारी  अपनी "आदी"
इस ख़त ने मुझे बैचेन कर दिया था| पर मैंने अपने अन्दर भाव को छिपाकर उसे बोला कि उसने मजाक किया है क्योंकि वो तुमसे प्यार करती है और उसका मन तुमसे मिलने को होगा इसलिए इस तरह का ख़त लिखा है| इसमे परेशान होने कि कोई जरुरत नहीं है| तुम जाओ और उससे मिल आओ| मैंने उसे बोला कृपया  तू जल्दी से जा  और उसे यकीन दे देना की तू भी उसी का है| मैं उसे बहुत तरह से समझा रहा था पर शायद वो जानता था कि आदी इस तरह का मजाक कभी नहीं करेगी| 
मैं सोच रहा था की लोग  ऐसा क्यों करते है की जिसकी वजह से किसी को अपनी जान गवानी पड़ती है|  क्या लोग अपने रीती रिवाजो को बदल नहीं सकते| आज तीन साल के बाद वो धीरे धीरे हंसने की कोशिश करता है पर हंस नहीं पाता  वो आज भी ख़ामोशी में है और दुनिया से अलग अपने ही विचारो में जी रहा है|