Saturday, November 23, 2013

भारत के विकास में बाधक: अमीरी या गरीबी ?

हम भारतवासी एक विशाल भूखंड पर निवास करते हैं । भारत में उपलब्ध विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक स्रोत हमें अपने आप पर ही निर्भर बना सकते है । बहुत सारी नदियों का जल हमें विश्व में कृषि के क्षेत्र में अग्रसर बनाये हुए है । तरह-तरह की वेशभूषा, रहन-सहन, भाषा, जलवायु इस देश के महत्त्व को और भी बढ़ा देती है । इन सबसे ऊपर हमारा लोकतान्त्रिक संविधान विश्व में अलग पहचान बनाये हुए है । परन्तु आज़ादी के इतने सालों  बाद भी हम दूसरे विकसित देशों की तरह विश्व में अपनी अलग धाक नहीं जमा पाये है । आज भी हम विश्व के नामी-गिरामी देशों के आगे अपने को बेबस और मजबूर देखते है । आखिर इसके पीछे कौन जिम्मेदार है ?  
भारत एक लोकतान्त्रिक देश तो है परन्तु सही मायनों में यहाँ लोकतंत्र का उपयोग नहीं हो पा रहा है । शासित लोग ही इस देश को विश्व का आदर्श शक्तिशाली देश बना सकते है ।भारत में जगह-जगह नक्सलवाद, माओवाद, जातिवाद, और धर्म के नाम पर होने वाली लड़ाईयां ये प्रदर्शित करती है कि देश का भविष्य गर्त कि तरफ जा रहा है और सरकारों की मानसिकता इसे आसान करती जा रही है । सही कानूनों का सख्ती के साथ पालन नहीं हो रहा है । सरकारों की राजनीति, लोगों को एक-दूसरे से नफ़रत की तरफ ठकेल रही है और उनमें "पहले भारतीय" का अहसास कम होता जा रहा है । इसी के परिणामस्वरूप लोग अब सिर्फ अपने और अपनों के फायदों के बारे में ही सोचते है ।
भारत में आर्थिक स्थिति के हिसाब से दो वर्गों का उत्थान हो चुका है, अमीरी तथा गरीबी ।  जहां भारतीय विश्व में अमीरी में अच्छे स्थान पर आते है वहीं गरीबी भी एक चिंताजनक स्थान पर है । इन दोनों के बींच का लम्बा फासला सरकार की कमजोरी को उजागर करता है । अवैध तरीकों से दूसरे देशों में छिपाया गया धन लोगों के मन से भारतीयता को हटा देता है । अगर उन अमीर लोगों की मानसिकता को बदला जा सके तो वो धन देश को काफी आगे ले जा सकता है । गरीबी में लोगों का दो वक्त के खाने का संघर्ष, देश के लिए कुछ ना कर पाने की मजबूरी है । आखिर उन्हें जिंदगी को आगे तो बढ़ाना है । हिंदी में एक कहावत प्रसिद्द है कि "भूखे पेट भजन होये ना गोपाला" । इसका शाब्दिक मतलब है कि जब तक इन्सान की प्रमुख जरूरतें पूरी नहीं हो जाती तब तक उसकी प्राथमिकता देश विकास नहीं अपनी जरुरत ही होगी ।
एक लोकतांत्रिक क्षेत्र-विशेष या देश के निर्माण का उद्देश्य भी यहीं होता है कि देश की परिधि में रहने वाले सभी लोगों के हितों की रक्षा की जाये । अन्यथा राजा-महाराजाओं वाले शासन से हम कैसे अलग है ?  इसके लिए संविधान ने न्यायलयों कि स्थापना की। पर लगता है वो पुराना राजाओं वाला शासन आज भी है बस उसे अलग तरह से परिभाषित कर दिया गया है । जैसे राजा लोगों को उपहार देकर खुश कर देते थे वैसे ही आज अमीर वर्ग धन से नियमों के साथ खिलबाड़ कर रहे है । अदालतों में सजा अपराधियों की असल मृत्यु के बाद तक सुनाई जाती है । निर्दोष लोगों को जबर्दस्ती फंसा कर मानवता का उपहास किया जा रहा है ।
अमीरों का उद्देश्य "मैं ही, बस मैं ही रहूँ" रहता है । अमीर नहीं चाहते कि आज का कोई गरीब कल को  उनके साथ बराबर में खड़ा हो । अतः वो हर कुटिल चाल से गरीबों को आगे बढ़ने से रोकता है । सरकार में भी इसी तरह के लोगों का बोलवाला होता है और वो सिर्फ अपनी मनमर्जी करते है । इसीलिए भारत के शिक्षित युवा विदेशों में चले जाते है क्योंकि उनको यहाँ उनके अनुरूप नौकरी नहीं मिल पाती ।  और उनका भारत भविष्य में योगदान नगण्य हो जाता है । ये सब अपनी लोकतान्त्रिक सरकार का भ्रष्टाचार के आगे नतमस्तक हो जाना दिखाता है ।