Saturday, February 19, 2011

"बोल बेसहारो का कौन सहारा"

मेरे हृदय के स्पंदन में , आप मन मंथन में
चिर पीराओं ने क्यों मारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

चमकी चपला उर अंतर में , गया कालकर्म भंतर में
जला अग्नि में मैं क्यों सारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

कुसुम कुसुम कली जली , तुष्य वात में बात हली
खिन्न भिन्न क्यों मन हमारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

पार्थ रण छोड़ गया , धर्म का दिल तोड़ गया
उठा मोह में क्यों जग सारा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

स्वर मलिन हो गया , भावहीन चित्त भया
'आज़ाद' दर्दो में दहाड़ा , बोल बेसहारो का कौन सहारा

Tuesday, February 1, 2011

सिर्फ.... रिश्ता है

ना हैवान से रिश्ता है, ना भगवान से रिश्ता है
आदमी का तो सिर्फ मान से रिश्ता है

ना पास दूर से रिश्ता है, ना लयगान से रिश्ता है
भ्रमर का तो सिर्फ रसपान से रिश्ता है

ना शौर्य से रिश्ता है, ना पराक्रम से रिश्ता है
युध्हों का तो सिर्फ अभिमान से रिश्ता है

ना गगन से रिश्ता है, ना जमीं से रिश्ता है
कोयल का तो सिर्फ मधुरगान से रिश्ता है

ना तप से रिश्ता है, ना जप से रिश्ता है
योग का तो सिर्फ आत्म दर्शन से रिश्ता है

ना प्रेम से रिश्ता है, ना नुफरत से रिश्ता है
बड़प्पन का तो सिर्फ अपमान से रिश्ता है

ना जीवन से रिश्ता है, ना मृत्यु से रिश्ता है
शरीर का तो सिर्फ अहसान से रिश्ता है

ना बंद पटो से रिश्ता है, ना खुले आँगन से रिश्ता है
घरो का तो सिर्फ पहिचान से रिश्ता है

ना वेदों से रिश्ता है, ना बचनो से रिश्ता है
सत्य का तो सिर्फ कुर्बान से रिश्ता है

ना रात से रिश्ता है, ना दिन से रिश्ता है
कुसंग का तो सिर्फ अज्ञान से रिश्ता है

ना दीपक से रिश्ता है, ना तम से रिश्ता है
कलयुग में धर्म का तो सिर्फ बेजान से रिश्ता है

इक रूखे सूखे दरिया से कहने लगी लहर
'आज़ाद' का तो सिर्फ इस जहाँ से रिश्ता है