Sunday, September 11, 2016

ये दुनिया तुझ में ही...


सिलसिले चलते रहे, और हम जलते रहे।
वो दूर से ही देखकर, मुस्कराते रहे।।
करीब से ना गुजरना था हमे उनके,
हम याद में रोते रहे, और वो बस हँसते रहे॥

निगाहें मिलाने की कीमत, चुकानी थी हमे।
दिले दरिया में डूबने की कीमत, चुकानी थी हमे।
हम उलझ गए थे प्यार के जाल में,
स्वप्न देखने की कीमत, चुकानी थी हमे॥

बहुत किये वायदे हमने, पर हम निभा ना सके।
आँखों से अश्क गिरे, पर उनको बता ना सके॥
दर्द-इ-तन्हाई में जलते रहे, गैरों की तरह;
वो अनजान बनते रहे, और हम कह ना सके॥

तुझे मेरी हकीकत पता है, फिर कुछ बोलती क्यों नही?
मैं गुजर रहा इस दौर से, ये ख़ामोशी तोड़ती क्यों नही?
साँसे जा रही है मेरी, इनको वापिस नही चाहता अब;
'आज़ाद' दुनिया तुझ में ही, जग की रस्मे छोड़ती क्यों नही?

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