Saturday, July 18, 2015

बुफे की दावत*

आप माने या न माने,
पर हमारे लिए सबसे बड़ी आफत ।
बुफे की दावत ॥
एक दिन हमें भी, जाना पड़ा बारात में ।
बीबी बच्चे थे साथ में ॥
सभी के सभी बाहर से शो पीस, मगर अंदर से रूखे थे ।
मगर क्या करे भाई साहब, सुबह से भूखे थे ॥
जैसे ही खाने का संदेसा आया हाल में ।
भगदड़ सी मच गयी पंडाल में ॥
एक के ऊपर एक बरसने लगे ।
जिसने झपट लिया तो झपट लिया, बाकी के खड़े तरसने लगे ॥
एक व्यक्ति हाथ में प्लेट लिए, इधर से उधर चक्कर लगा रहा था ।
खाना लेना तो दूर उसे देख भी नहीं पा रहा था ॥
दूसरा
अपनी प्लेट में चावल की तश्तरी झाड़ लाया था ।
उससे तो कही ज्यादा, अपना कुर्ता फाड़ लाया था ॥
तीसरी
एक महिला थी जो ताड़ के वृक्ष की तरह तनी थी ।
उसकी आधी साड़ी तो, पनीर की सब्जी में सनी थी ॥
उसे बार बार धो रही थी ।
पड़ोसिन की पहन कर आई थी, इसलिए रो रही थी ॥
चौथा
बेचारा गरीब था, लाचार था ।
इसलिए कपडे उतार कर, पहले से ही तैयार था ॥
पाँचवा
अकेले ही सारे झटके झेल रहा था ।
भीड़ में घुसने से पहले, डंड पेल रहा था ॥
झठा
कल्पना में ही खाना खा रहा था ।
प्लेट दूसरे की देख रहा था, मुंह अपना चला रहा था ॥
सांतवें
का तो मालिक ही रब था ।
प्लेट तो उसके हाथ में थी, मगर हलवा गायब था ॥
आंठवा
इन हरकतों से बहुत ज्यादा परेशान था ।
इसलिए उसका बीबी बच्चों से ज्यादा, प्लेट पर ध्यान था ॥
नवां
अजीब हरकते कर रहा था ।
खाना खाने की बजाय, अपनी जेबों में भर रहा था ॥
दसवाँ
स्वयं लड़की वाला था, जिसके प्राण कंठ में अड़े थे ।
घराती तो सारे जीम रहे थे, और बाराती बेचारे सडकों पर खड़े थे ॥
अंत में देखते हुए ये हालत ।
हमने पत्नी से कहाँ 'डियर', लौट चले सही सलामत ॥
सुनते ही वो बिगड़ गयी ।
पता नहीं, किस बेफकूफ के पल्ले पड़ गयी ॥
इससे अच्छा तो किसी पहलवान से शादी रचाती ।
तो कम से कम, भूखी तो न मारी जाती ॥
पर इससे शादी रचा के, आज तक अपने आप को कचोट रही हूँ ।
जिंदगी में पहली बार, किसी दावत से बिना कुछ खाए लौट रही हूँ ॥  

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