Wednesday, July 1, 2015

बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके


मैं दूर तुझसे हो रहा हूँ, सिर्फ तेरी ही ख़ुशी के लिए ।
प्यार तो अब भी है तुझसे, बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके ॥

हर गिरते हुए तारे से, ख़ुशी तेरी ही मांगता हूँ ।
पागल मन अब भी रोता है, बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके ॥ 

शहर की गलियां खाली है, मकानों से कोई आवाज नहीं आती ।
शायद मैं सूनेपन के आगोश में हूँ, बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके ॥

कोई दूर बाग़ में बैठ चहकता है, तो किलकारियाँ मेरी निकलती है ।
सावन में भींगा मौसम नीरस, बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके ॥

अब कोई स्वप्न ना देंखू कभी, नींद को ठुकरा रहा हूँ मैं ।
पर दिन के उजाले में भी स्वप्न है, बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके ॥

गुजरती हवा पास से मेरे, मेरा अंग अंग दुखाती है ।
'आज़ाद' ये प्यार है क्या आखिर? बस जी रहा हूँ हसरतों को दबाके ॥ 

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