Thursday, May 7, 2015

जीवन का सत्य


हम इंसानों की दुनिया बड़ी विचित्र है । हम ईश्वर की खोज में पता नहीं कहाँ कहाँ तक पहुंच जाते है, पर उस इंसान की कभी पूजा नहीं की जो खुद ईश्वर है । उसने कभी बोला नहीं की वो ईश्वर है । पर उसने कभी किसी का बुरा नहीं किया, शायद सोचा ही नहीं था । हम उस पर विश्वास नहीं करते जो हमारे पास है, हम भागते रहना चाहते है ताउम्र । यहीं तो दुःख की चाल है ।

किसी के मन में क्या चल रहा है जानना मुश्किल होता है । परन्तु हमारे मन में क्या है उस पर हमें गौर करना चाहिए । क्या सही है क्या गलत, हम सबको भलीभांति पता रहता है । कभी भी हमें खुद को ऊँचा साबित नहीं करना चाहिए । क्योंकि ईश्वर की सत्ता को हम कभी नहीं जान सकते । हमें ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए, उसने हम सबको मौत जैसे सुन्दर पल दिए । मौत की यादें हमारी बुराइयों को कम कर सकती है ।

हम जिंदगी की दौड़ में हिस्सा लेते है । कभी कभी वो दौड़ हमारी मौत को बदनाम कर देती है । हमने गलत किया, ऐसा नहीं करना चाहिए था, सोच इंसान को बलबती बनाती है । हर पल हमें ऐसे उसूलों पर काबिज रहना चाहिए । अपने आंतर से मानी हुई गलती क्षमा योग्य होती है ।

किसी पर अटूट विश्वास करना, किसी के खातिर जीना, इंसान की अपनी सोच है । अगर वो सोच नीयत के विरुद्ध नहीं है तो वो महानता है । जो परमत्व से जोड़ सकती है । कुछ क्षण आंतर की बुराई से उपजे पाप, हमारे मन को दूषित कर सकते है । परन्तु हमारे जीवन की लम्बी साधना, उस बुराई को तन तथा मन से दूर करने में सक्षम होती है । हमें किसी की भावनाओं को आहात किये वगैर सत्य के रास्ते पर चलने का हमेशा प्रयत्न करना चाहिए ।

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