Saturday, May 2, 2015

उफ़ ये जिंदगी


हम खोजते रहे जिंदगी को, जिंदगी हमें धोखा देकर निकल गई ।
हम देखते रह गए रास्तों को, जिंदगी रास्ता बदलकर निकल गई ॥
बड़ी मुश्किल से मनाया था मन, अब के जिंदगी को समझकर रहूँगा ।
ना समझ था ना समझ ही रह गया, अब के तो जिंदगी पूरा मारकर गई ॥

रोते रहे रातभर सोते रहे ख्वाब में, जिंदगी ने ये खेल क्यूँ खेला ?
किसी की चहकती किलकारियों को, चढ़ती ताउम्र तन्हाई में क्यूँ धकेला ?
उस जिंदगी के वास्ते जी रहा था, अब किस जिंदगी के वास्ते जी रहा हूँ ?
क्यूँ तड़फ रहा चिर विलाप में, कल भी था अकेला आज भी हूँ अकेला ?

कुदरत के वास्ते तू रोना मत कभी, जिंदगी के वास्ते कुछ कहना मत कभी ।
ये दर्दमयी संसार उकसाए बार बार, जिंदगी के वास्ते इसमें तू रहना मत कभी ॥
खोजते है अपने से उदास चेहरों को, शायद ये भूलने को हम अकेले रह गए है ।
पर ना ढूँढा उस रहमत को जिसने सिखाया, जिंदगी को फासलों में ढहना मत कभी ॥

ऐ जिंदगी मेरे सवालों के जबाब तो दे, मेरे खालीपन के अहसासों का हिसाब दे ।
अब तो तेरी हर चाल कामयाब हो गई, मेरी शहादत पर दर्द-इ-विरह का खिताब दे ॥
इस जिंदगी ने हर आरज़ू को पल में समेटा, हम थमे नहीं और जिंदगी काट कर गई ।
इन साँसों के बोझ तले जिंदगी दफ़न कर दी, 'आज़ाद' अब कफ़न से हमे नबाज दे ॥

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