Thursday, December 15, 2011

सबको समझो

 मैंने ऐसा नहीं सोचा था. मेरे कहने का वो मतलब नहीं था. मैं तो कुछ और सोच के बोला था. पर उसने वो नहीं सुना जो मैं कहना चाह रहा था. उसने उसे गलत समझा. मैंने हर तरह से उसे समझाने की कोशिश की, पर वो तो बड़ी के ऐंठ में था. लोग हर बार वोही बोलते थे कि थोड़ा और अनुभव लो जबकि हकीकत तो उन्हें भी पता होती थी. वो हमेशा कहते थे कि तुम कुछ भी नहीं जानते हो, शायद वो कुछ और ही कहना चाह रहे थे. पर मैं तो नादान
नहीं था. सबकुछ समझ सकता था, उनको वो सब साफ़ साफ़ कहना चाहिए था. पद के नशे में अँधा हुआ हमेशा अँधा ही रहता है क्योंकि शबाब उसे सोचने नहीं देता. उसने मुझे ऐसा बोला मुझे दुःख हुआ, क्योंकि उसने उसे परिहास का विषय बना दिया. उसके द्वारा बोला गया एक एक शब्द मेरे को संताप दे रहा था. पर मैं खामोश ही रहा पता जो था, बात बढने पर सिर कुटते है.------------------------------------------------------------------

शायद मैंने भी कभी किसी को ऐसे ही बोला होगा, मजे लेने के लिए. इन्सान कि प्रव्रत्ति मजे लेने के लिए लालायित जो रहती है. पर सबके मजे लेने के ढंग अलग अलग होते है. कोई इस तरह से लेता है कि किसी को पता भी चलता. कुछ इस तरह से कि जमाना जान जाता है. शायद मैंने भी ये नहीं सोचा होगा कि मेरे मजे लेने से दूसरा क्या क्या कर सकता है? क्योंकि अगर मैं ऐसा सोचता तो मैं जिन्दगी को आदर्श जिन्दगी बना सकता था. इस बात ने मुझे लोगो से बात करना छुड़वा दिया. केवल कैसे हो? क्या चल रहा है? से तंग जो था. लोगो को उबाऊ लोग पसंद नहीं. जबकि सब उनका उदाहरण देते है.-------------------------------------------------------------
एक मानव होने के नाते उससे ये ही तो पूझा था कि मैंने गलती क्या कि है? अगर हम सभ्य समाज के सपने देखते है तो उनके लिए उन पदचिन्हों पर चलना भी पड़ेगा, जिनके बिना सभ्य समाज कि नींव नहीं डाल सकते. अगर मैंने गलती कि थी तो उसे बताना चाहिए था ताकि मैं उससे सबक ले सकू. डांट फटकार कर चले जाने को कह देना, उसके लिए आसान था, शायद और लोगो के लिए भी आसान होता, शायद किसी घड़ी में मेरे लिए भी. पर उस समय मुझे वो सब खल गया. ये तो जिसका प्रतिविम्व था खुद विचलित था. अगर मैं ये किसी और बरिष्ठ को बोला तो वो बोला इसमे बुरा क्या लग गया? परन्तु उस समय जो आवाज, चेहरे कि भाव भंगनाएं बदलते हुए जिस तरके से निकली थी उसको मैं कैसे समझाता. --------------------------------------
मैं धन्यवाद देता हूँ उस ईश्वर का जिसने मौत बनायीं और हम लोगो ने संसार को नश्वरवाद नाम दे दिया. मौत हमारे प्रदर्शन का अंतिम दर्शन है. मौत को भूल जाने वाला ही दुखी और लोलुप बन जाता है. हम सब दुखी और लोलुप बनते जा रहे है. प्रकृति ने धरा को सबकुछ दे रखा है. लेकिन जब धरावासी प्रकृति के नियम तोड़ते है तो उसका कोप जाग जाता है. कोप का भाजन श्रद्धा के तांते से जो होता है. प्रकृति के नियम को समझना और उसे अमल करना थोड़ा कठिन है तभी तो बहुत कम लोग उसके रहस्यों को जानने कि चेष्ठा करते है. ----------------------------------------------------------------
घरो को पत्थरो और दीवारों को तस्वीरों से भर देने से कुछ नहीं होता उससे डरना भी चाहिए. पहले होता आया है इसलिए मैं कर रहा हूँ, ये सही और सटीक जबाब नहीं है. आप मानव हो, मानवता ही आपके रग रग में होनी चाहिए. वो तो कभी न रोया जिसको रोना चाहिए था. परन्तु ये आंसू उनकी ही आँखों में क्यों आते है, जो रोने के लिए बाध्य है. वो कर सकते है सबकुछ पर उनके पत्थर दिल पे सांप जो लेता है. तथा जो कर के दिखाते है उनको पहचानने कि फिदरत हममे है ही नहीं.----------------------------------------------------------------------------
इसने बोला ये करो, उसने बोला वो कर, तुम कर सकते हो कम से कम प्रयास तो करो. हर कोई मेरे से उम्मीद कर रहा है. सभी ने मेरे से कुछ करने के लिए बोला पर किसी ने वो नहीं कहा जो मुझे करना चाहिए था. जो मेरे लिए और आदर्श समाज के लिए जरुरी है. कैसी विडम्बना है लोगो कि वो उढे तो सभी ने उन्हें अपना आदर्श बना लिया, पर जिस समय वो जाग रहे थे तो उन सभी ने उन्हें अपमानित किया था. यह जरुरी नहीं कि अच्छा शरीर, अछ्छा धन और समाज में अछ्छी पहचान, कुछ को हमेशा खुश रख सकती है. वो तो अपने को दुर्बल, असहाय भी मान सकते है. ख़ुशी और दुःख तो ये दर्शाता है कि हमारी सोच - विचारो कि जड़े कितनी पैन्ठी है. ---------------------------------------------------------------------------------------
अब क्या हुआ? मैंने सब कुछ तो कर लिया, जो आपने कहा था. अब आप को गुस्सा क्यों आया? इतने पर वो बोखला कर बोला क्या तुम मेरे गुस्से को कम करोगे? अभी ये काम करना है अभी वो काम करना है. कोई भी अछ्छी तरह से काम नहीं करना चाहता. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ. उनके कहे हुए काम को कोई न करे ये तो नामुमकिन था. फिर वो आखिर जाताना क्या चाह रहा था? जबकि उसको मैंने कभी काम करते देखा ही नहीं बस बोलते ही देखा था. शायद वो ये बताना चाह रहा था कि वो बस बोलेगे और उसके खिलाफ कोई नहीं बोलेगा. -----------------------------------------------------------------------------------------------   




 








     

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