ना हैवान से रिश्ता है, ना भगवान से रिश्ता है
आदमी का तो सिर्फ मान से रिश्ता हैना पास दूर से रिश्ता है, ना लयगान से रिश्ता है
भ्रमर का तो सिर्फ रसपान से रिश्ता है
ना शौर्य से रिश्ता है, ना पराक्रम से रिश्ता है
युध्हों का तो सिर्फ अभिमान से रिश्ता है
ना गगन से रिश्ता है, ना जमीं से रिश्ता है
कोयल का तो सिर्फ मधुरगान से रिश्ता है
ना तप से रिश्ता है, ना जप से रिश्ता है
योग का तो सिर्फ आत्म दर्शन से रिश्ता है
ना प्रेम से रिश्ता है, ना नुफरत से रिश्ता है
बड़प्पन का तो सिर्फ अपमान से रिश्ता है
ना जीवन से रिश्ता है, ना मृत्यु से रिश्ता है
शरीर का तो सिर्फ अहसान से रिश्ता है
ना बंद पटो से रिश्ता है, ना खुले आँगन से रिश्ता है
घरो का तो सिर्फ पहिचान से रिश्ता है
ना वेदों से रिश्ता है, ना बचनो से रिश्ता है
सत्य का तो सिर्फ कुर्बान से रिश्ता है
ना रात से रिश्ता है, ना दिन से रिश्ता है
कुसंग का तो सिर्फ अज्ञान से रिश्ता है
ना दीपक से रिश्ता है, ना तम से रिश्ता है
कलयुग में धर्म का तो सिर्फ बेजान से रिश्ता है
इक रूखे सूखे दरिया से कहने लगी लहर
'आज़ाद' का तो सिर्फ इस जहाँ से रिश्ता है
आदरणीय vijay sharma जी
ReplyDeleteआपकी कविताओं को पढने के बाद आपकी रचनात्मकता से परिचय हुआ ....आपकी सभी कविताओं का भाव और शिल्प दोनों पक्ष बहुत मजबूत हैं ...आप अपनी रचना प्रक्रिया जो अनवरत जारी रखें ...हमारा सहयोग सदा आपके साथ है ....आपका आभार