Saturday, January 15, 2011

इक चरित्र

ऐ किलास  क्यों मिस की 
ऐ लैब तैयार  क्यों ना हुई
ऐ ये  ऐसे क्यों किया
ये वैसे क्यों किया
क्या कसूर है मेरा?
यही की मैं चापलूसी ना कर पाया
उनकी तारीफ में ना कुछ बोल पाया
वो चाहते है हर काम को सम्हालना
उनकी उलझने मैंने क्यों बढाई  थी
बहसबाजी में जीभ क्यों लड़ाई  थी
वो चाहते है हर कुछ अपना बना लेना
उनका बनकर मैं क्यों ना रह सका
अफ़सोस मैं ओवरस्मार्ट  बन ना सका
वो पढ़ा ना सके तो किलास छोड़ दी
कारण दिल्लगी में समय नहीं था
उनकी खूबसूरत अदाएं उनका वो दीवाना था
उनके लिए तो कुछ भी करे ये सारा कॉलेज माना था
आँखों के सामने उसको बिठाया था
बाकी सब पंगत में बैठे थे
कुछ शांत थे उनके रस में
कुछ अपने में ऐंठे थे
सोचता हूँ वो कैसे रहता होगा अपने परिवार में
दिल तो इधर कैद है उसी के प्यार में
मानना पड़गा जो खास थे वो चले गये
ना वो गयी ना उसे जाने दिया
मीटिंग का टाइम भी कॉलेज के बाद का था
पर सुबह एक मिनट लेट रेगिस्टर में टाइम पड़ता था
एक्जाम सेल का तो सत्यानाश कर दिया
बच्चो ने पेपर तो दिए मगर कॉपिया गायब हो गयी
लोग अपने को बनाये रखने के लिए क्या क्या करते है
उनका ही नुकशान होता है जो मेहनत से काम करते है
एक शब्द पोलिटिक्स नुफरत है मुझे इससे
वो शेर है मजबूरो के लिए
पर खुद कायर है अपनी मजबूरी के लिए
अरे 'आज़ाद' लोग स्वार्थ के वशीभूत क्यों ऐसा करते है
जबकि सबको पता है शरीर  नश्वर है
और ये मिटटी में ही मिलेगा

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