Thursday, January 6, 2011

नये साल की ख़ुशी

नींद गहरी थी , स्वप्नों में खोया था,
अचानक उठे शोर ने मुझे जगा दिया,
लगा कुछ गंभीर मामला है,
समय देखने के लिए फ़ोन को चालू किया.
फ़ोन में कुछ अनरीड मेसेज थे,
मेसेज पढ़े तो थोड़ा ज्ञान हुआ,
शोर न्यू इयर के लिए हो रहा है.
बाहर निकला तो देखा, ताज्जुब हुआ,
हर कोई मस्त है, गानों की धुन पर व्यस्त है.
लोग पीकर झूम रहे है, घर घर द्वार द्वार पर घूम रहे है.
वे आपस में गले लग रहे है, जैसे पैर जन्नत में पड़ रहे है.
लोग एक दूसरे को मिठाइयाँ बाँट रहे है,
प्रेम के इस माहौल में ठण्ड को कांट रहे है.
लोग भूल रहे है की कोई छोटा है,
भूल रहे है की उससे वैर है जो गले से लगा है,
भूल रहे है की मृत्युलोक में है जन्नत में नहीं.
आज मैंने लोगो के दिल में प्यार देखा,
उनकी आँखों में नए साल का खुमार देखा.
वो खुश है नया साल आ गया है……..
विसरा दिया है सबकुछ की नया साल आ गया है,
ऐसा क्यों नहीं होता की लोग रोज नया साल मनाया करे,
रोज गले मिले प्रेम से रहे एक दुसरे को ना सताया करे.
एक ही दिन की इतनी ख़ुशी क्यूँ है?
क्या पुराना साल इतना बुरा था की आप मुक्त होना चाहते थे?
क्या आपने पुराने साल में बहुत दिक्कते झेली?
प्रकृति को तो कोई बाध्य नहीं कर सकता……..
पर क्या तुम्हारे बजह से कोई रोया तो नहीं था?
नए साल के लिए क्या संकल्प करोगे?
कि कभी इमान ना बेचोगे?
दूसरो के अश्को को अपना समझोगे?
पता नहीं कैसी और क्यों ये नए साल की खुमारी है?
'आज़ाद' तो समझा बस, ये दुनिया नशे में बाबरी है 

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