Wednesday, January 5, 2011

आखिर क्यूँ

क्यूँ कल तक मौन रहा, जब उजड़ रहा था कोई घर
क्यूँ आज अब गरज रहा, जब आफत आई अपने पर

क्यूँ कुरुक्षेत्र इस जग में है, क्यूँ नैन आंसुओं से सनता
क्यूँ बसंत बना है पतझड़क्यूँ विलख रही हर वनिता

क्यूँ करुण रुदन किसी का, पल पल सुख देता है
क्यूँ गरीब लाचार शब्द से, हर क्षण  चैन लेता है

क्यूँ छिपता किसी के मन में, आगोश का भण्डार
क्यूँ रहता किसी के हस्त में, जलता ये संसार

क्यूँ देखें सपने कोई, बेबस को उजाड़कर
क्यूँ घुट घुट कर जलता कोई, अपनो से हारकर

क्यूँ शमशान सा हो चला, इस जग का हर कोना
क्यूँ पल पल मेरे पास हुआ, जो ना था मेरा होना

क्यूँ दीरघ विपदा से सिमटी, धरा कमकम्पी  लेती  है
क्यूँ दुखमयी वात से गुजरकर, व्यार जताती स्नेही है

क्यूँ भर रही तिजोरी किसी की, निर्धन के धन से
क्यूँ विलसती है विलासताअमीरी में हर मन से

क्यूँ सताता निर्बल को कोई, तन में जब बल आया है
क्यूँ गुजरता उन राहों से जहाँ, कलि काल बन आया है

क्यूँ  उजड़ जाते है रिश्ते, जब एक भाग्य साथ ना हो
क्यूँ बिछुड़ जाते है अपने, जब तक वैभव हाथ ना हो

क्यूँ 'आज़ाद' रहा यश तलाश, किसी का एश्वर्य छीनकर
क्यूँ बना रहा लाख महल, किसी का कलेजा चीड़कर  

No comments:

Post a Comment