Friday, December 24, 2010

हर आँगन में आग है


अंगारों की फसल उगी है
हर आँगन में आग है
माली की लापरवाही पर
रोता सारा बाग़ है
कितनी कलियाँ मसली जाती
रौंदें जाते फूल है
रक्षक दर्शक बन कर बैठे
हँसते जिन पर शूल है

कभी विदेशी बाँट गये थे
दो टुकड़ों में ये घर बार
पर अब हम खुद सौ टुकड़ों में
बंटने को बैठे तैयार
यहाँ बना दो मंदिर मस्जिद
यहाँ बना दो खालिस्तान
हमें चाहिए सत्ता चाहे
बंट जाये फिर हिन्दुस्तान

अब रौशनी बुझी जा रही
अन्धकार की दिखती जीत
भूले हम तुलसी की वाणी
भय बिन कभी ना होत प्रीत
'आज़ाद' दुनिया में जीया
रोया देख विहंग राग 
घर घर कलह मची है 
अब हर आँगन में आग  

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