ब्यार बही मन उड़ा, काफ़िर अब क्यूँ रोता है ?
निर्लज्ज, नालायक मन, क्यूँ उसमें खोता है ?
सारे रिश्ते उसने भुला दिये, पता नहीं क्यूँ ?
क्यूँ आँखों में भर नींद उनकी, स्वप्नों में सोता है ?
चाह क्या है मेरी, उनको इससे क्या लेना |
पलकों पे सजा चाह उनकी, बस वोही तो होता है ||
तेरे इरादे ना समझा, पर मेरे इरादे तू समझ गई |
मुकर गई हर बात से, क्या तू स्वार्थ का झरोटा है ?
दिल तोडा तूने, दर्द हुआ, उस ग़म को तू क्या जानेगी ?
'आज़ाद' प्यार ना दुनिया में, मतलब में सब होता है ||
निर्लज्ज, नालायक मन, क्यूँ उसमें खोता है ?
सारे रिश्ते उसने भुला दिये, पता नहीं क्यूँ ?
क्यूँ आँखों में भर नींद उनकी, स्वप्नों में सोता है ?
चाह क्या है मेरी, उनको इससे क्या लेना |
पलकों पे सजा चाह उनकी, बस वोही तो होता है ||
तेरे इरादे ना समझा, पर मेरे इरादे तू समझ गई |
मुकर गई हर बात से, क्या तू स्वार्थ का झरोटा है ?
दिल तोडा तूने, दर्द हुआ, उस ग़म को तू क्या जानेगी ?
'आज़ाद' प्यार ना दुनिया में, मतलब में सब होता है ||
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