Tuesday, June 11, 2013

विरह मे…

तेरी शरारत मुझे जीने न दे,
क्योंकि तेरी नज़रों में मेरा आशियाना हो गया है ।
मेरे होठों से लब्ज निकले या न निकले,
पर दिल मेरा भी तो सयाना हो गया है ॥
तुझे मैं कैसे न पसंद करूँ ?
तूने ख्यालों में मेरे घर बना तो लिया ।
तूने कहा न पसंद करती है मुझे,
 पर इशारों ने तेरे सच बता तो दिया ॥
तेरा चुपके से धीरे से मेरे तन को दबाना,
'आज़ाद' के भावुक हृदय में, प्रेम का दीप जला तो दिया ॥  

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