Tuesday, June 11, 2013

विरह में ...

मेरे सपनों का जहाँ, अजीब हो गया ।
इस प्यार में यारों, मैं फ़कीर हो गया ॥
पता नहीं; अश्क आँखों में रुके या होठों तक आये ?
रातों की नींद, दिन के ख्याल, बस खो गया ॥
दर्द हुआ या नहीं, आभास ना होता है।
क्योंकि मेरी जान के बिना, मेरा शरीर हो गया ॥
उनकी हंसी के लिए, भुलाया था ज़माने को ।
'आज़ाद' आज वो ही हमसे, अजनबी सा हो गया ॥

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