Saturday, November 12, 2011

प्रजातंत्र के रखवाले


जिनके घरो में दीपक नहीं
नहीं तेल और बाती
वो राह दिखाते भटको को
बने आज खैराती
प्रजातंत्र के रखवाले
पीते निसदिन खून
भरे तिजोरी आपनी
बस छाया यही जूनून

लम्बे लम्बे वायदे काफी 
एक भी न पूरा होता है 
क्या राजनीति मेरे देश की!
बिना रिश्वत, सब अधूरा होता है
हो उद्धार देश का कैसे
जटिल बना है यही सवाल
जिसके हाथ कमान है
उसे तनिक ना ख्याल
 
आखिर कब तक झेलेंगे हम
पाप, अन्याय, भ्रष्टाचार को
क्यों बने है कायर से हम
लानत हमारे विचार को
जाग जा रे मानव अब
छोड़ रंगमय ये बसेरा
'आज़ाद' आवाहन बस एक
हो जग में कभी अँधेरा

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