Saturday, October 1, 2011

यही तो अफसोस है मुझे

इस दुनिया का क्या है ? ये तो कुछ भी समझ लेती है
पर प्रिये ! तुमने ना समझा , 
यही तो अफसोस है मुझे.

साथ रहना चाहा हरवक्त तुम्हारे, वो चंद लम्हे मेरे अहम थे 
पर उन चंद लम्हों ने, दिल में तुम्हारे, ख्वाब ना पलाया 
यही तो अफसोस है मुझे.

तुम्हारी हंसी का कायल था मैं, तुम्हारे गम में आंसू मेरे बहे थे
पर आज, वक्त के कदमो से डरकर, तूने मुझे भुला दिया
यही तो अफसोस है मुझे.

"मैं तुम्हारी हूँ" तुमने क्यों कहा था ? मैं सच समझ बैठा
तुम्हारे भोलेपन की आहों में, मैं दरिया सा बह गया 
यही तो अफसोस है मुझे.

मैं जा रहा था बहुत दूर, मंजिल का मुझे पता नहीं
आगे पथ सुनसान तो क्या, पर तू मुझसे अंजान हुई 
यही तो अफसोस है मुझे.

तेरी नजरो से बंधा था मैं, जाने क्यों ? पता नहीं
पर तेरी नजरे, तो मेरी नजरो से, कभी मिली ही नहीं
यही तो अफसोस है मुझे.

तेरी मूरत मेरे अन्तः में बसी, दिन रात उसको संवारता था मैं
मेरे नयनो की बारिश, नहलाती उसे हमेशा, पर तेरी पलकें भींगी नहीं
यही तो अफसोस है मुझे.

'आज़ाद' बैचेन घड़ी में घिर गया, तेरी ख़ामोशी ना टूटे, यही इन्तजार था
पर तेरे, अब तक के खामोश लब्ज, कुछ बोल गए
यही तो अफसोस है मुझे.    

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