Friday, July 15, 2011

हा देव

ये आकाश क्यों फटा है?
कोई तारा कहाँ गिरा है?
बदला ये नाम क्यों रे?
नीर क्यों जला है?

मीन क्यों तड़फे है?
लीन क्यों गरजे है?
सिंह क्यों दहाड़े?
कुछ तो मुझे बता रे

परमपिता कहाँ है?
जो मुझसे खफा है
नाराजगी ना दिखारे
जो जीता तेरे सहारे

उपवन क्यों उजाड़े?
चितवन क्यों संवारें?
अब शांत भी हो जा
तुम जीते हम हारे

ये जग क्यों बिछड़ा?
मैं क्यों आगे निकला?
'आज़ाद' जाने क्या रे?
डूबा किस चाह रे?

शून्यमय उषा भई
द्वंद में शाम गई
दिन ढला जल्दी से
मैं बढा किस राह रे?

स्वप्न मिथ्या क्यों लगा?
मोह मिथ्या क्यों बंधा?
क्यों जगा अपनत्व?
मुझको कुछ थाह दे

छू मेरी स्मर्तिया
वेदनायों को सहला दे
'आज़ाद' खड़ा अजनबी सा
कदमो में उसे पनाह दे

No comments:

Post a Comment